Tuesday, 24 November 2015

आयोजन की फजीहत
ऐसी ही स्थिति कुछ दशक पूर्व देखी गई थी जा राजस्थान विश्वविद्यालय ने एक साहित्यिक सगोष्ठी में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडयि को मुख्या अतिथि के रूप में बुलाया था. इस मंच पर महादेवी वर्मा भी मौजूद थी. पहाड़िया ने अपमानजनक तरीके से कहा था- महादेवीजी, मैं जब छात्र था तब भी आपकी कविताये मेरी समझ में नही आती थी. मैं मंत्री और फिर मुख्यमंत्री बन गया तब भी आपकी कविता मेरे सिर पर से गुजर जाती है. आप ऐसा क्यों  लिखती है और किसके लिए लिखती है? समाज के लिए इसका क्या उपयोग है? ऐसे भाषण से आयोजक सन्न रह गए. महादेवी वर्मा भी अपमान का पीकर रह गई थी. एक अन्य आयोजना में एक नामी किन्तु कुंठित लेखक को बुलाया गया था. उनसे बाल साहित्य की पुस्तको के बारे में प्रोत्साहन देनेवाले विचार व्यक्त करने की उम्मीद थी परन्तु उन्होंने मंच पर आते ही अच्छी पुस्तकों को भी घटिया बताया और कहा की इससे बहुत बढ़िया किताबे उन्होंने लिखी है जिन्हे ख़रीदा व पढ़ा जाना चाहिए. एक अन्य विद्धान तुलसी जयंती कार्यक्रम में पहुंचे और वहां उन्होंने कहा की मुझे क्यों बुलाया गया. पता नही मैं तो सिर्फ वाल्मीकी रामायण के बारे में जानता हु. पता नही ऐसे वक़्त उन कार्यक्रमों का निमंत्रण क्यों स्वीकार के लेते जय जिनमे उनकी दिलचस्पी नही रहती. वे जब मंच पर आते है तो आयोजन को सवारने की बजाय बिगड़ने की कुटिलता दिखाते है.

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