Wednesday 14 October 2015

ज़िंदगी हमेशा लुभाती है

हिरण्याक्ष का वध करने और धरती को वापस समुद्र से बहार अपने लोक वापस वापस नहीं लौटे, तो लक्ष्मी देवताओं और पार्षदों को चिंता होने लगी किसी समझ में नहीं आया की वराह कहा गए. व्याकुल देवताओं ने भगवन शंकर से अनुरोध किया कि उनकी तलाश करें. शंकर ने हर जगह खोजा पर वह कहीं नहीं मिले. वह उन्हें दोबारा ढूंढने लगे. इस बार उन्होंने उन्हें सभी लोकों में तलाशा. जब भूलोक में उन्होंने देखा, तो पाया कि वहां वह अपना परिवार बनाएं बैठे है. स्वजनों के साथ क्रीड़ा कल्लोल में संलग्न है. शिवशंकर ने उनसे वापस ब्रह्मलोक चलने की प्रार्थना की. वराह ने बात नहीं मानी और कहा, "मैं यहीं मजे से हु. शिव ने कहा आपके बिना तीनों लोकों में हाहाकार मचा हुआ है.वराह ने इस बारे में कुछ भी कहने- सुनने से इंकार कर दिया और अपना क्रीड़ा-विनोद छोड़ने को तैयार न हुए. बहुत समझाने के बाद भी वराह नहीं माने, तो शंकर क्रुद्ध हो गए. उन्होंने त्रिशूल से वराह का पेट फाड़ डाला. उनका शरीर क्षत-विक्षत हो गया, तो विवश होकर वराह भगवन अपने लोक जा पहुंचे. प्रतीक्षा में चिंतित बैठे देवताओं ने जब उनसे वलंब का कारण पूछा तो उन्होंने कहा शरीर और उसकी ममता बड़ी प्रबल है. जीवधारी उसी में लिप्त होकर लक्ष्य को भूल जाते है. सुख-साधनों के छूटे बिना उस माया से छुटकारा नहीं मिलता. अन्य शरीरधारियो की तरह मेरी भी दुर्गति हुई. शिवशंकर ने उस माया को विदीर्ण न किया होता, तो मेरे लिए भी वापस लौटने कठिन था. यह सुनकर शंकर हस पड़े उन्होंने कहा आसक्ति के बंधनो में बंधे हुए जीव अगर त्याग न करें तो उनका छुटकारा संभव नहीं आसक्ति ग्रस्त भगवन वराह की जब यह 
दुर्गति हुई तो दूसरों के बारे में कहना ही क्या?'

No comments:

Post a Comment