अब मज़बूरी यह है इनके प्रभावों के विषय में न तो अधिक जानकारी उपलब्ध है, न ही इलाज. इसी के मद्देनजर वैज्ञानिको ने चूहों पर जारी शोध में निष्कर्ष प्राप्त किये की विकिरण युक्त माहौल में रहने वाले जो चूहे स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी, स्पाइनेश आदि की खुराक पर थे, उनमे न्यूरोजिकल हानिया साधारण खुराक पाने वाले चूहों की अपेक्षा बहुत कम पाई गई. वैज्ञानिको के शोध सिद्ध करते है की फल व सब्जिया चूहों में टूयूमर की प्रगति रोक देती है. शायद यह फलों में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट्स के कारण होता है. जो उम्र बढ़ाने की प्रकिया में मस्तिष्क में ऑक्सीडेटिव प्रभावों से लड़ने में मदद करते है. असल में मस्तिष्क की कोशिकाएं समय के साथ उसी तरह ऑक्सीकृत होती रहती है. जिस तरह लोहे का दरवाजा जंग पकड़ता जाता है, लेकिन फल इस जंग को खत्म करके कोशिकाओ को फिर से जवां कर देते है. सो अंतरिक्ष यात्रा के नए नियम लिखे जाने लगे है. सुदूर ग्रहो की यात्रा के आरंभ से कुछ दिन पहले से ही फलों अथवा उनके रस सार की खुराक पर रखा जाने लगेगा. इसके साथ ही अंतरिक्ष यान का एक कोना फलों व उसन के लिए रिजर्व हो जायेगा. यही नहीं, वैज्ञानिक चाहते है की जल्द पूरा का पूरा बागान ही अंतरिक्ष यान के साथ भेजा जाये जो उनकी ऑक्सीजन की प्राकृतिक रूप से आपूर्ति करने के साथ ही विकिरण से बचने के उपाय तो पेश करे ही, खाने का एक स्वादिष्ट और स्वस्थ पर्याय भी बने.
- वैसे ताजे फल और सब्जिया अंतरिक्ष में पहली मर्तबा जायेगे. ऐसा नहीं है. सेब केले और गाजर आदि को पहली बार अप्रैल 1983 में अंतरिक्ष में खाने के साथ भेजा गया था. इसके बाद संतरे, नाशपाती, अंगूर, प्याज लहसुन और टमाटर आदि भी भेजे जाने लगे. लेकिन, इसमें केले और संतरे अपनी उत्पादन गंध के कारण कम लोकप्रिय हो गए
- ताजे फल और सब्जिया 16 से 24 घंटे पहले अंतरिक्ष यान में लोड किये जाते है. लेकिन इनकी पैकेजिंग खुलते ही गंध अंतरिक्ष यान में व्यात हो जाती है. इसके साथ ही इन्हे अंतरिक्ष में खाने की दिक्क्त तो है ही जिसके कारण इन्हे टुकड़ो में करके पैक किया जाता है.
- माइक्रो ग्रेविटी में आगमन पर कुछ चालक दल के सदस्यों को मितली की शिकायते भी आम है. इसके बावजूद इनके प्रभावों को देखते हुए इनके उपयोग को प्रतिबंधित नही किया गया. लेकिन अब उन्हें उगाने की तैयारी के साथ ही उनके विकिरण से बचाव का पक्ष भी सामने आ गया है. तो छोटी-मोटी परेशानिया तो झेली ही जा सकती है.
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