अनुपम उपहार।
उनको भी तो है,
दुनिया में जीने का अधिकार।
दुनिया में जीने का अधिकार।
मत कुचलो, कोख में
खीलने से पहले इस काली को।
और मत बिगाड़ो,
प्रकृती के संतुलन को।
अगर हम बिगाड़ेंगे
प्रकृति का संतुलन,
अगर हम बिगाड़ेंगे
प्रकृति का संतुलन,
तो आने वाली पीढ़ी हमसे पूछेगी एक दीन।
इसलिए अभी भी वक़्त है सभल जाओ।
कोख में ही न इन नन्ही कलियों को मुरझाओ।
इन नन्ही कलियों को फूल बनने दो
आपके जीवन में बहारों को आने दो।
यह महकाएगी आपके घर-आँगन को।
यह गले-गुलजार बनाएगी आपके घर को।
बेटा है दीपक तो, बेटी है बाती।
बेटा है सीप तो, बेटी है मोती।
बेटा ही नहीं, बेटी भी तो है जीवन का आसरा।
बूढ़े माँ-बाप की लाठी और जीने का सहारा।
जब रक्षाबंधन आएगा तो, कौन बाँधेगा भैया को राखी।
इसलिए तो हम कहते है,
बेटी को मत समझो अभीशाप सखी
जब यह भरेगी उची उड़ान और आसमान को छुएगी,
तब सारी दूनीया में यह नाम आपका रोशन करेगी
नारी से ही चलता है, सारा संसार
नारी ही तो करती है, सृजनत्व का आविष्कार।
No comments:
Post a Comment