Monday 5 October 2015

गज़ल

बदल जायेगे सारे मंजर दोस्त
बस छोड़ हाथ का खंजर दोस्त। 
कभी तो ले जरा सबक इनमें
यूं ही नहीं आते है बवंडर दोस्त।
फिर जाकर उंगली उठाना किसी पर
तू पहले झाँक अपने अंदर दोस्त।
वक़्त के हाथों कुचल दिया गया,
समझा जिसने खुद को सिकंदर दोस्त।
होते है जब कभी लहूलुहान रिश्ते,
अपनों का ही होता है खंजर दोस्त।
किसी के भले ही सोच पैदा कर,
मिलेंगे तुझको खुशनुमा मंजर दोस्त। 

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