जो न आता सलीका बोलने का।
न हो मालूम कुछ तो नहीं कुछ बोलने का।।
खामोशियाँ भी भेद सारे खोलती है।
रखो मुंह बंद, सच आँख से बोलने का।
फकत अदावत-दुश्मनी, तकरार ही पैमाना नहीं
बस मुहब्बत से मुहब्बत तौलने का।
नहीं जरुरी यह कि, हर किसी के साथ हो लो,
जानकर पहचान ही, दौड़ने का।
दर्द छिपे रहते हैं हँसी में भी बहुत,
दिल हंसने वाले का टटोलने का।
कैद में उड़ने की चाहत, उड़ने न देंगी
ऐ परवाज उड़ ,-पर खोलने का।
कातिल जहां से सामना है, ज़िन्दगी का
अच्छा नहीं अब मौत से, डर डोलने का।
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