बेमौसम अतिवृष्टि हो जाती है और मौसम आता है तो बादलों के दर्शन भी दुर्भल हो जाते है. पिछले कुछ साल का अनुभव भी यही बताता है. और हर बार यह सवाल उठता है की इस बदलते मौसम का मुकाबला हम कैसे करे? बदलते मौसम का मुकाबला करने के भी कई पहलू है, पर सबसे महत्वपूर्ण पहलू खेती-किसानी से जुड़ा है, इसलिए भी की यह खाद्द सुरक्षा से जुड़ा है, और इसलिए भी की देश की बहुत बड़ी आबादी आज भी निर्भर करती है. इस मामले में सबसे ज्यादा मददगार हो सकते है हमारे मौसम और कृषि विभाग. ये दोनों विभाग आपसी तालमेल से किसानो को यह बता सकते है की आने-वाले दिनों के आसार के अनुसार वे किन फसलो की बुआई करे, किनसे दूर रहे और किन फसलो की कटाई को कब कर ले.
धारणा यह है की राजनितिक दबाव मौसम विभाग को खतरों की भविष्यवाणी करने से रोकते है क्योंकि ऐसी कोई भी भविष्यवाणी लोगो को हताश कर सकती है, शेयर बाजार में मंदी ला सकती है और सरकार की साख को खतरा आने से पहले ही बट्टा लगा सकती है. यह भी मुमकिन है कि दूसरे कई सरकारी वैज्ञानिक संस्थानों की तरह हमारा मौसम विभाग अपने काम को पेशेवर ढंग से अंजाम देने की कुशलता नहीं हासिल कर पाया हो. सच जो भी हो और पर्यावरण के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन व संघियो में हम कितना भी हासिल कर ले, इन जंग लगे विभागों व औजारों के भरोसे जलयावु-परिवर्तन का मुकाबला नही के सकेंगे, जब हमारे ये विभाग बदलाव को समझे व्यवहारिक बने किसानो को वास्तविक उपयोग के विकल्प दे.
No comments:
Post a Comment