Friday, 16 October 2015

उपकार की भलाई का बदला

एक बार प्रात:काल ईश्वरचंद्र विद्यासागर घूमने जा रहे थे. उन्होंने देखा कि एक आदमी रोता हुआ जा रहा है. वे उसके पास गये प्रेम से उसके दुःख का कारण पूछा. ईश्वरचंद्र को सादी वेश-भूषा में देखकर वह बोला मैं बड़े-बड़े धनवानों के पास गया,पर किसी ने मेरी सहायत न की आप क्या कर सकेंगे? ईश्वरचंद्र के बहुत  विनय करने पर वह बोला भाई मेरे बाप-दादो की सम्पति केवल एक घर ही है. वह आज नीलम होगा, अब हम लोग कहाँ रहेंगे? ईश्वरचंद्र ने उसका पता पूछ लिया. अगले दिन वे कचहरी में गए और उसके नाम तेईस सौ रूपये जमा करा आये. उधर वह आदमी दिन-भर कचहरी वालों की राह देखता रहा. जब कोई न आया तो घबराकर वह कचहरी मे गया. पता लगा की कोई सज्जन तेईस सौ रूपया जमा कर गये है. वह सोचने लगा की हो न हो, यह काम उन्ही सज्जन का है,जो मुझे प्रात:काल मिले थे. वह ईश्वरचंद्र को ढूँढने लगा. एक दिन प्रात:काल वायु सेवन को जाते समय उसने ईश्वरचंद्र को पहचान लिया और दोनों हाथ जोड़कर बोला आपने मुझे बचा लिया है. बड़ा उपकार किया है. इस पर ईश्वरचंद्र  उत्तर दिया. तुम्हे उपकार  भलाई का  बदला चुकाना चाहिए, इसलिए मैं तुमसे यह चाहता हुँ कि इस बात को किसी से भी मत कहना वह ईश्वरचंद्र का त्याग देखकर हैरान रह गया. 

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