कात्यायनी देवी दुर्गा जी का छठा अवतार है. शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायनी त्रहषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारन इनका नाम कात्यायनी पड़
गया. नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पुरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है.
देवी कात्यायनी |
दिव्य रूपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समान चमकीला है. चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार है. अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए है. देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुडी एक कथा प्रसिद्दा है. एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया. इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। उनकी कोई संतान नहीं थी. माँ भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बितने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्याधिक बढ़ गया तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उनका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया
षष्ठी तिथि के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है. इस दिन प्रसाद में शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुन्दर रूप प्राप्त करता है. माँ कात्यायनी अमोघ फल दायिनी मणि गई है. शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयास भक्तोँ को माता की आवश्य उपासना करनी चाहिए
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