Sunday 3 January 2016

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विश्वास की थैली
एक डाकू था जो साधू के भेष में रहता था. वह लूट का धन गरीबो में बांटता था. एक दिन कुछ व्यापारियों का जुलुस उस डाकू के ठिकाने से गुजर रहा था. सभी व्यापारियों को डाकू ने घेर लिया. डाकू की नजरों से बचाकर एक व्यापारी रुपयों की थैली लेकर नजदीकी तंबू में घुस गया. वहां उसने एक साधू को संभालने के लिए दे दी. साधू ने कहा की तुम निचिंत हो जाओ. डाकुओं के जाने के बाद व्यापारी अपनी थैली लेने वापस तंबू में आया. उसके आर्चर्य का पार न था. वह साधू तो डाकुओं की टोली का सरदार था. व्यापारी वहां से निराश होकर वापस जाने लगा मगर उस साधू ने व्यापारी को देख लिया. उसने कहा रुको तुमने जो रुपयों की थैली रखी थी वह ज्यों की त्यों ही है. अपने रुपयों को सलामत देखकर व्यापारी खुश हो गया. डाकू का आभार मानकर वह बाहर निकल गया. उसके जाने के बाद वहां बैठे अन्य डाकुओं ने सरदार से पूछा की हाथ में  धन को इस प्रकार क्यों जाने दिया सरदार ने कहा व्यापारी मुझे भगवन का भक्त जानकर भरोसे के साथ थैली दे गया था. उसी कर्तव्यभाव से मैंने उन्हें थैली वापस दे दी. किसी के विश्वास को तोडने से सच्चाई और ईमानदारी हमेशा के लिए शक के घेरे में आ जाती है. 

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