Wednesday 18 November 2015

Story

क्षमा की जीत
एक तपस्वी को उसके शिष्य ने कुछ कह दिया.शिष्य की बातें सुनकर तपस्वी को क्रोध आया और वह उसे मारने दौड़ा. मगर रात के अँधेरे में वह खंभे से टकरा गया और उसका देहांत हो गया. तपस्वी मरकर फिर तापस बना और इस बार वह आश्रम का अधिपति बन गया. उसका नाम था, चंडकौशिक तापस. एक बार आश्रम में ग्वालबाल फल-फूल तोड़ने के अभिप्राय से आ घुसे, क्रोधित चंडकौशिक उन्हें देखकर मारने दौड़ा. मगर ध्यान न रहने से वह एक कुए में जा गिरा और मर गया. क्रोध के क्षणो में मृत्यु होने से चंडकौशिक तापस उसी वन में विष-दॄष्टि सर्प बना. विषधर और भयंकर सर्प के डर से लोगों ने उधर जाना-आना बंद कर दिया. एक बार भगवन महावीर स्वामी साधना करते-करते हुए उस वन में जा निकले. महावीर को चंडकौशिक नागराज ने ज्योही देखा, वह विष ज्वाला उगलने लगा. महावीर भी उसके बिल के पास ही अडिग खड़े रहे. क्षमा और क्रोध का संघर्ष चलता रहा. चंडकौशिक सर्प ने महावीर के चरणो में अपना तीक्षण दंश भी मारा.मगर वहां खून के बदले दूध की धार बह निकली. चंडकौशिक यह देखकर अचभित रह गया. पहली बार उसने देखा कि किसी व्यक्ति को सर्पदंश से खून नही, दूध निकला है. सर्प थोड़ा सहज हुआ तो वह महावीर की चरणों में लौटने लगा. महावीर ने उससे कहा कोई बात नही हम दोनों ने अपने-अपने स्वाभाव के अनुसार आचरण किया. तुम्हे भी पता होगा की अतत:क्षमा और शांति ही जीतती है, कहते है की इसके बाद चंडकौशिक ने लोगों को काटना-फुफकारना छोड़ दिया. अब उसने लोगों को अभय देना शुरू किया. जिस दिन उसकी मृत्यु हुई, उस दिन चंडकौशिक ने देवयोनि प्राप्त की.

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