Tuesday 6 October 2015

मेरी तरह वह माता क्यों विलाप करे

महाभारत का युद्ध जिस दिन समाप्त हुआ, उस दिन कृष्ण पांडवों को लेकर शिविर में नहीं लौटे उसी रात अश्वत्थामा ने पांडवो के शिविर में आग लगा दी और पांडव पक्ष के बचे हुए वीरों के साथ ही द्रौपदी के पांचों पुत्रों को भी सोई हुई अवस्था में मार डाला. सुबह कृष्ण और पांडव लौटे.शिविर की दशा देखकर जो दुःख उन्हें हुआ. महारानी द्रौपदी की व्यथा का पार नहीं था. उनके पांचों पुत्रों के मस्तकहीन शरीर उनके सामने पड़े थे. मैं हत्यारे अश्वत्थामा को इसका दंड दूंगा. अर्जुन ने द्रौपदी को आश्वासन दिया. कृष्ण के साथ गांडीवधारी अर्जुन एक रथ में बैठकर चले. अश्वत्थामा ब्रह्मारत्र का प्रयोग करके भी बच नहीं सका. अर्जुन ने उसे पकड़ लिया, किंतु गुरुपुत्र का वध करना उन्हें उचित नहीं जान पड़ा.अश्वत्थामा को देखते ही भीमसेन ने दांत पीसकर कहा इस दुष्ट को तत्काल मार देना चाहिए. किंतु द्रौपदी की दशा भिन्न थी.अश्वत्थामा को देखकर वह पांडवों से बोली यह क्या किया अपने ? जिनकी कृपा से आप सबने अस्त्रज्ञान पाया है, वे गुरु द्रोणाचार्य ही यहा पुत्र रूप में खड़े है. झटपट  छोड़ दीजिए. पुत्र-शोक कैसा होता है,यह में अनुभव कर रही हू. इनकी पूजनीया माता कृपादेवी को यह शोक न
हो.  द्रौपदी की दया विजयी हुई अश्वत्थामा के मस्तक की मणि लेकर उसे छोड़ दिया गया. 

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