Monday 12 October 2015

माता शैलपुत्री



माता शैलपुत्री 
माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरुप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती है. पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हे शैल पुत्री कहा गया. भगवती का वाहन बैल है. इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाए हाथ में कमल का पुष्प है. अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थी. इनका विवाह भगवन शंकर से हुआ था. पूर्वजन्म की भाति इस जन्म में भी यह भगवन शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त है. नवरात्रे-पूजन में प्रथम दिवस इन्ही की पूजा उपासन की है. सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए नवरात्र के पावन पर्व में पूजा जाने वाली नौ दुर्गाओं में सर्व प्रथम भगवती शैलपुत्री का नाम आता है. पर्व के पहले दिन बैल पर सवार भगवती माँ के पूजन-अर्चना का विधान है. माँ के दाहिने हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. अपने पूर्वजन्म में ये दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में पैदा हुई थी. उस समय इनका नाम सती रखा गया. इनका विवाह शंकर जी से हुआ था. शैलपुत्री देवी समस्त शक्तियों की स्वामिनी है. योगी और साधकजन नवरात्र के पहले दिन मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते है और योग साधना का यहीं से प्रारंभ होना कहा गया है.

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