Tuesday 29 September 2015

कहानी

घमंडी का सिर निचा
एक बार एक नदी के किनारे नारियल का पेड़ लगा हुआ था. उस पर लगे नारियल को अपने पेड़ के सुन्दर होने पर बहुत गर्व था. सबसे ऊचाई पर बैठने का भी उसे बहुत मान था. इस कारण धमंड में चूर नारियल हमेशा ही नदी के पत्थर को तुच्छ पड़ा हुआ कहकर उसका अपमान करता रहता. एक बार, एक शिल्प कार उस पत्थर को लेकर बैठ गया और तराशने के लिए उस पर तरह-तरह से प्रहार करने लगा. यह देख नारियल ने कहा, 'ऐ पत्थर, तेरी भी क्या ज़िन्दगी है पहले उस नदी में पड़ा रहकर इधर-उधर टकराया करता था और बाहर आने पर मनुष्य के पैरों तले रौंदा जाता था. आज तो हद ही हो गई. ये शिप्ली तुझे हर तरह से चोट मार रहा है और तू पड़ा देख रहा है, कैसी तुच्छ ज़िन्दगी जी रहा है, मुझे देख कितने शान से इस उचे वृष पर बैठता हूँ. पत्थर ने उसकी बातों पर ध्यान नही दिया. कुछ दिनों बाद, उस शिल्पकार ने पत्थर को तराशकर शालिग्राम बनाये और पूर्ण आदर के साथ इनकी स्थापना मंदिर में की गई. पूजा के लिए नारियल को पत्थर के बने उन शालिग्राम के चरणों में चढ़ाया गया. इस पर पत्थर ने नारियल से ' नारियल भाई कष्ट सहकर मुझे जो जीवन मिला उसे ईश्वर की प्रतिमा का मान मिला. मै आज तराशने पर ईश्वर के समतुल्य माना गया. जो सदैव अपने कर्म करते है वे आदर के पात्र बनते है.

सिख:- घमंड मनुष्य जीवन के लिए एक शत्रु की तरह है जो हमेशा उसके लिए विनाश का मार्ग बनाता है.

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