Tuesday 15 September 2015

यज्ञ की सफलता का रहस्य

जब महाराज युधिष्ठिर का यज्ञ पूरा हो गया, तो वहां ऋषियों की सभा हुई. सभा में यज्ञ की चर्चा होने लगी. किसी ने कहा, ऐसी उदारता से कोई यज्ञ हुआ है, यह हमने नहीं सुना. क्योकि इसमें नर-नारायण अर्जुन और श्रीकृष्ण झूठी पत्तल समेट रहे थे. इसी बीच एक नेवला दिखाई पड़ा, आधा शरीर सोने का था. वह मनुष्य की तरह बोला, 'यज्ञ तो कुरुक्षेत्र में एक ब्राह्मण ने किया था. उसके पुण्य प्रभाव से देवलोक से तत्काल दिव्य विमान आया और उसमे बैठकर ब्राह्मण परिवार स्वर्ग चला गया.'  सभासदों ने नेवले से उस यज्ञ के बारे मैं विस्तार से बताने के लिए कहा. वह बोले 'कुरुक्षेत्र में एक ब्राम्हण, उसकी स्त्री पुत्र और पुत्रवधु रहते थे. बहुत दिनों से उन्हें अन्न नहीं मिला था. वे सब उपवास कर रहे थे. कई दिनों बाद ब्राम्हण सेर-दो-सेर अन्न बीनकर लाया और यथाविधि बनाकर तैयार किया. जैसे वे खाने को हुए, एक अतिथि आ पंहुचा और उसने भोजन मांगा ब्राम्हण ने अपना हिस्सा दे दिया. फिर भी उसका पेट नहीं भरा. तब उसकी स्त्री और पुत्र ने भी अपना-अपना हिस्सा दे दिया. अंत में पुत्रवधू अपना हिस्सा देने आई, तो ब्राह्मण बोला तू बहुत निर्बल है, तू मत दे.' पुत्रवधू बोली 'पिताजी ,शरीर नष्ट भी हो जाए, तो फिर भी क्या प्राप्त हो जायेगा. किंतु धर्म जाकर फिर वापस नहीं लौटेगा यह सुनकर ब्राह्मण के आनंद का ठिकाना नहीं रहा. उसी समय विमान आया और सारे कुटुंब को बिठाकर स्वर्ग ले गया. में उस समय उस जगह लोट भर गया था, जिसमे मेरा आधा शरीर सोने का हो गया. बाकि आधा शरीर सोने का करने के लिए में यहां आया, पर वैसा नहीं हुआ. अत: उस ब्राह्मण का यज्ञ इससे बढ़कर था.

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